ठीक उसी प्रकार हम मनुष्यों के भाग्य में कितना है यह कर्म करने के पश्चात ही सुनिश्चित होता है!! अतः ना ही कर्म बड़ा है ओर ना ही भाग्य….. भाग्य एक ताला है और कर्म उसकी चाबी !!!
आचार्य जी पहुंचे और सबसे मिलने लगे, उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराये और सभी से थोड़ी देर बाद मिलने को कहा।
और अगर आप पूर्व जन्म की बात करें तो फिर उस लॉजिक से कुछ भी समझाया जा सकता है!
खासतौर से अभय दीक्षित जी ने और अटूट बन्धन ब्लॉग से वंदना बाजपेयी जी ने तो इस वाद-विवाद प्रतियोगिता का स्तर काफी ऊँचा कर दिया.
कर्म एक ऐसा सिद्धांत है जो भाग्य को समझने में मदद करता है। हम मानते हैं कि केवल हमारे कार्य ही कर्म हैं, जबकि हमारे द्वारा सोचे गए हर विचार और बोले गए हर शब्द भी कर्म के निर्माण में भूमिका निभाते हैं। “जैसा मेरा कर्म, वैसा मेरा भाग्य।” यही वह नियम है जो हर व्यक्ति के भाग्य को निर्धारित करता है। कर्म को समझना हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि प्रत्येक कार्य, शब्द और विचार का एक परिणाम होता है और यह हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है।
तो चलिए अपनी डिबेटिंग स्किल्स दिखाइए और अपने तर्कों से आपे उलट विचार रखने वालों को भी अपनी बात मानने पर मजबूर कर दीजिये! ????
चेतन कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है
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पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने
मैं-तो फिर आचार्य जी आपने ज्योतिष क्यों सीखी? क्या आप इसे अपनी गलती मानते हैं कि आपने ज्योतिष सीखकर अपना समय बर्बाद किया, या जो भी आपसे ज्योतिष सीख रहे हैं वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?
अर्थात:- मेहनत से ही कार्य पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से नहीं। जैसे सोये हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता बल्कि शेर को स्वयं ही प्रयास करना पड़ता है।
I think in here a lot of cases luck prevails in excess of labour or karma. I've witnessed many of such individuals that had under no circumstances been seriously interested in their career and expended time aimlessly with pals and nevertheless bought great occupation.